उत्तर प्रदेश की भूमि सदा से कला, संस्कृति और परंपराओं की उर्वर भूमि रही है। यहाँ की हर हस्तकला केवल एक शिल्प नहीं, बल्कि जनजीवन की गहराई, प्रकृति से जुड़ाव और आत्मनिर्भरता की जीवंत मिसाल होती है। ऐसी ही एक परंपरा है मूंज शिल्प—जो प्रयागराज, अमेठी और सुल्तानपुर जैसे जिलों में प्राचीन समय से ग्रामीण जीवन का हिस्सा रही है। मूंज और कासा घास की बहुलता और उनसे बनने वाले हस्तशिल्पों ने प्रयागराज को एक विशिष्ट पहचान दी है।
महेवा मूंज शिल्प की सांस्कृतिक धरती
प्रयागराज का नैनी क्षेत्र और विशेष रूप से महेवा गाँव मूंज शिल्प के केंद्र बिंदु के रूप में उभरे हैं। यहाँ के कुशल शिल्पकार अपने हाथों से डलियाँ, चटाइयाँ, बैग, टोकरियाँ और विभिन्न सजावटी वस्तुएँ तैयार करते हैं, जो न केवल घरों की शोभा बढ़ाती हैं, बल्कि शिल्पकारों के जीवन में आत्मसम्मान और आर्थिक मजबूती भी प्रदान करती हैं। महेवा को मूंज शिल्प के कारण अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है और अब यह ‘मूंज शिल्प पर्यटन ग्राम’ के रूप में विकसित हो रहा है। यह पहल न केवल पारंपरिक कला को जीवित रख रही है, बल्कि इसे पर्यटन और रोजगार के नए अवसरों से जोड़कर ग्रामीण विकास का भी मार्ग प्रशस्त कर रही है।
हस्तशिल्प से पर्यटन का सेतु
मूंज शिल्प अब केवल एक ग्रामीण उत्पाद नहीं रहा, बल्कि यह एक जीवंत अनुभव, एक सांस्कृतिक यात्रा, और मिट्टी से जुड़ने की अनुभूति बन चुका है। जब कोई पर्यटक महेवा जैसे गाँवों की पगडंडियों पर चलता है, वहाँ के शांत वातावरण में शिल्पकारों की उंगलियों से मूंज की बुनाई देखता है, तो वह केवल एक वस्तु नहीं, बल्कि उस संस्कृति की आत्मा को महसूस करता है। मूंज से बनी डलियाँ, टोकरियाँ, बैग और सजावटी वस्तुएँ न केवल उसकी आँखों को आकर्षित करती हैं, बल्कि उसके हृदय में ग्रामीण श्रम की गरिमा और प्रकृति की सुगंध बसा देती हैं।
यह अनुभव पर्यटक को एक क्रेता भर नहीं रहने देता, बल्कि उसे उस परंपरा का संवाहक बना देता है, जो पीढ़ियों से श्रम, शांति और सृजन की कहानी कहती आई है। मूंज शिल्प के माध्यम से ग्रामीण जीवन की सादगी, आत्मनिर्भरता और प्रकृति से जुड़ाव को जीने का अवसर मिलता है।
प्रदेश सरकार की ‘ग्रामीण पर्यटन नीति’ ने इस परंपरा को एक नया आयाम प्रदान किया है। अब पारंपरिक हस्तशिल्प केवल स्मृतियों में नहीं, बल्कि पर्यटन की धड़कन में जीवित हैं। नीति के अंतर्गत ऐसे शिल्पों को पर्यटन स्थलों और ग्रामों से जोड़ा जा रहा है, जहाँ न केवल पर्यटक को सौंदर्य और संस्कृति का मेल देखने को मिलता है, बल्कि स्थानीय शिल्पकारों को स्थायी और सम्मानजनक आजीविका का माध्यम भी मिलता है।
मूंज शिल्प को जब ग्रामीण पर्यटन से जोड़ा गया, तो यह केवल उत्पाद नहीं रहा—यह एक संवाद बन गया: श्रम और सौंदर्य का संवाद, परंपरा और नवाचार का संवाद, पर्यटक और कारीगर के बीच भावनात्मक संवाद।
निषादराज जयंती पर सांस्कृतिक जागरण
3 अप्रैल, निषादराज जयंती के अवसर पर प्रयागराज में आयोजित भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम इस सोच का जीवंत उदाहरण बना। निषादराज पार्क—जो कि उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा 6 हेक्टेयर भूमि पर विकसित किया गया है, यहां पर माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने भगवान श्रीराम और निषादराज की प्रतिमा पर विधिवत आरती व पूजन कर आध्यात्मिक धरोहर को सम्मानित किया।
इस कार्यक्रम की एक महत्वपूर्ण झलक रही “अयोध्या शोध संस्थान” द्वारा आयोजित मूंज शिल्प प्रदर्शनी, जहाँ माननीय मुख्यमंत्री जी ने मूंज उत्पादों का अवलोकन किया और ग्रामीण कारीगरों की कलात्मकता की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि इस शिल्प में न केवल आत्मनिर्भरता की शक्ति है, बल्कि यह प्रदेश के सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक भी है।
मुख्यमंत्री जी ने “मान्यवर कांशीराम पर्यटन प्रबंध संस्थान” द्वारा प्रशिक्षित नाविकों, टूर गाइडों और स्वयं सहायता समूहों के हस्तशिल्प कारीगरों को प्रमाण पत्र वितरित कर उनका उत्साहवर्धन किया। इससे न केवल कारीगरों का आत्मबल बढ़ा, बल्कि पर्यटन और शिल्प के बीच मजबूत संवाद की नींव भी रखी गई।
श्रम, संस्कृति और संवाद का संगम
कार्यक्रम की सबसे भावनात्मक झलक वह पल था जब मूंज शिल्प से जुड़े कारीगरों और लाभार्थियों को मंच मिला—जहाँ पर उनके श्रम की सराहना की गई और उनके उत्पादों को गौरव से प्रदर्शित किया गया। यह केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं था, बल्कि ग्रामीण पर्यटन के उस भावनात्मक पक्ष की अभिव्यक्ति थी, जहाँ कारीगर केवल उत्पादक नहीं, बल्कि संस्कृति के संवाहक के रूप में सामने आते हैं।
जब शिल्प से संवाद होता है, तो केवल चीज़ें नहीं बिकतीं—परंपराएँ संजोई जाती हैं, सम्मान लौटता है, और समाज एक-दूसरे के करीब आता है। यह संवाद उस संतुलन की मिसाल है, जहाँ विकास की रफ्तार संस्कृति की गहराई से तालमेल बिठाकर चलती है।
यह पहल यह भी दर्शाती है कि पर्यटन केवल दृश्य नहीं, अनुभव है—और जब उसमें स्थानीय कारीगरों की रचनाएँ, कहानियाँ और आत्म-सम्मान जुड़ जाते हैं, तब वह अनुभव और भी सजीव हो उठता है।
एक अनुभव, एक पहचान—मूंज शिल्प
मूंज शिल्प प्रयागराज की परंपरा, प्रकृति और प्रतिभा का संगम है। यह वह कला है जो धरती की गोद से उपजती है, मेहनत की उँगलियों में आकार पाती है, और फिर किसी घर या शो-पीस के रूप में सजीव हो उठती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा इस शिल्प को दिया गया सम्मान, संरक्षण और मंच केवल एक प्रशासनिक प्रयास नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक आत्मा को वैश्विक पहचान देने का मिशन है।
इस शिल्प की खूबसूरती यह है कि यह न केवल घरों को सजाता है, बल्कि जीवन को भी संवारता है—कारीगरों को आत्मनिर्भर बनाता है, और पर्यटकों को स्मृति से भरपूर अनुभव देता है।
ग्रामीण पर्यटन नीति और सांस्कृतिक संरक्षण की इस दिशा में किए जा रहे प्रयास यह सिद्ध करते हैं कि जब परंपरा और पर्यटन का संगम होता है, तो न केवल एक शिल्प फलता-फूलता है, बल्कि एक क्षेत्र, एक समाज और एक राज्य की पहचान वैश्विक पटल पर उभरकर सामने आती है।
आज जब पर्यटक प्रयागराज आते हैं, तो संगम, कुम्भ और धार्मिक स्थलों के साथ-साथ अब उन्हें मूंज शिल्प का सौंदर्य और उसके पीछे की मेहनत भी आकर्षित करती है। यह वह यात्रा है जहाँ कला, संस्कृति और विकास एक साथ चलते हैं।
अब समय है कि ऐसे उत्पादों और अनुभवों को अपनाया जाए, जो हमारी जड़ों से जुड़े हों—क्योंकि यही जड़ें हमारे भविष्य को स्थायित्व, सुंदरता और सम्मान से भर सकती हैं।