प्रकृति ने दुनिया को कई बहुमूल्य उपहार दिए हैं। उत्तर प्रदेश के बांदा में मिलने वाला शजर पत्थर इन्हीं में से एक है। बांदा जिले की केन नदी यूपी की इकलौती नदी है, जो पत्थरों पर रंगीन चित्रकारी करती है। शजर पत्थर बेहद दुर्लभ और खूबसूरती के लिए दुनियाभर में मशहूर है। ‘शजर’ का इस्तेमाल मुख्यतः ज्वेलरी और सजावट के सामान बनाने में होता रहा है। बुंदेलखंड घूमने आने वाले सैलानी बड़ी संख्या में शजर पत्थर देखने की इच्छा रखते हैं। बांदा में सैकड़ों लोग शजर पत्थर पर अपनी हाथ की सफाई कर उसकी चमक बिखेर रहे हैं।
केन नदी में मिलने वाला हर पत्थर शजर नहीं होता। शजर स्टोन को कारीगर मशीनों के जरिए काटते-छांटते हैं। फिर उसमें डिजाइन की पहचान होती है। पहचान के बाद उसकी चमक को और उभारा जाता है। हालांकि, अधिकांश पत्थरों पर पेड़-पौधों की आकृतियां होती हैं। यही आकृति उन्हें अनोखा बनाती है। अरब देशों में शजर को जहां ‘हकीक’ कहकर बुलाते हैं, वहीं भारत में ‘स्फटिक’ कहते हैं।
400 साल पहले बांदा में मिला
शजर को ‘आश्चर्य का पत्थर’, ‘महिमा का पत्थर’ और ‘अनंत इतिहास का पत्थर’ भी कहते हैं। शजर की खोज तकरीबन 400 साल पहले बांदा में हुई थी। इसे ढूंढने वाला अरब मूल का व्यक्ति था। कहते हैं वह इसके रंग-बिरंगे डिजाइनों से मंत्रमुग्ध हो गया था। पत्तियों और पेड़ों की तरह दिखने की वजह से उसने इस पत्थर का नाम ‘सजर’ रखा। क्षेत्र विशेष के स्पर्श के कारण सजर, ‘शजर’ बन गया।
ब्रिटेन से मध्य-पूर्व तक खासा लोकप्रिय
गुजरते वक़्त के साथ अपनी विशिष्टता के कारण शजर की ख्याति दुनियाभर में फैलने लगी। विदेशों में निर्यात होने लगा। बांदा में सैकड़ों लोग शजर पत्थर तराशने में जुटे। देखते ही देखते स्थानीय स्तर पर छोटे उद्योग का रूप लिया। कारीगरों ने अपनी हाथ की सफाई से इसकी चमक वैश्विक स्तर तक बिखेरी। बुंदेलखंड के कुशल कारीगरों ने अंतरराष्ट्रीय मांग पूरी भी की। यह पत्थर अभी भी मध्य-पूर्व में खासा लोकप्रिय है। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के लिए दिल्ली दरबार में नुमाइश लगाई गई थी। तब रानी विक्टोरिया को शजर पत्थर इतना पसंद आया था, कि वह उसे अपने साथ ब्रिटेन ले गईं।
हज यात्रा पर साथ ले जाते हैं शजर
दुनिया भर से सऊदी अरब जाने वाले हज यात्री कुरान की आयतों के साथ शजर पत्थर की स्मृति चिन्ह साथ ले जाते हैं। इनमें से अधिकांश बांदा से निर्यात होता है। भू वैज्ञानिकों के अनुसार, शजर अर्ध-कीमती रत्न श्रेणी में सूचीबद्ध है। हालांकि, इसमें कीमती पत्थर के सभी गुण अर्थात दुर्लभता, स्थिरता और सुंदरता तीनों पाए जाते हैं। इस पत्थर के बारे में कुछ मिथक भी हैं। कहते हैं यह पहनने वाले को ताकत और मानसिक शक्ति देता है।
मुगल शासनकाल में भी लोकप्रिय
शजर पत्थर पर प्रकृति स्वयं चित्रकारी करती है। पत्थर के खनन से लेकर इसे तराशने तक कई प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है। मुगल शासनकाल में शजर की मांग बढ़ी थी। उस वक़्त एक से एक कारीगरों ने इस पर बेजोड़ कलाकृतियां बनाईं। समय के साथ कई कारखाने खुले, जिसने लोगों को रोजगार दिया। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में शजर पत्थर और इससे बनने वाली कलाकृतियों की काफी मांग है।
कुशल कारीगरी का नायाब नमूना
शजर पत्थर की खूबसूरती में कुशल कारीगरों की बड़ी भूमिका होती है। एक साधारण सा दिखने वाला पत्थर जब दक्ष हाथों से गुजरता है, तो एक सुंदर मनमोहक आकार ले लेता है। इसकी छाप कल्पना से परे होती है। पॉलिश किए पत्थर को जब कीमती धातुओं में जड़ा जाता है, तो वह आभूषण की सुंदरता में चार चांद लगा देता है।
विविधतापूर्ण दुर्लभ पत्थर
शजर की विविधता, गुणवत्ता और विलक्षणता अद्भुत है। कोई भी दो पत्थर किसी भी तरह से समान नहीं होता है। आपके पास कोई टुकड़ा होता है, तो वह दुर्लभ और केवल एक ही होता है। इन पत्थरों का उपयोग ज्यादातर सजावटी उद्देश्यों जैसे- पेंडेंट, ईयर रिंग, अंगूठियां, पेपर वेट, सिंदूरदानी आदि के लिए किया जाता है। बांदा की जीवनदायिनी केन नदी में मिलने वाले शजर को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने में यहां के कारीगरों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कई मंचों पर उन्हें सम्मानित भी किया गया है। इस पत्थर में विदेशी मुद्रा अर्जित करने की संभावनाएं हैं।
शजर को प्राप्त है ‘GI टैग’
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से शजर पत्थर को ‘GI टैग’ प्रमाण पत्र मिला है। इससे कारीगरों और कारोबारियों को उम्मीद है कि आने वाले समय में शजर की मांग और बढ़ेगी। साथ ही, डुप्लीकेसी में भी सुधार आएगा। ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ (ओडीओपी) के तहत शजर पत्थर बांदा की शान बना हुआ है।
जानकार बताते हैं, शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में जब किरण शजर पत्थर पर पड़ती है, तो उस समय जो भी चीज बीच में आती है, उसकी आकृति पत्थर पर उभर आती है। इराक, इरान, सऊदी
अरब से आने वाले सैलानी बांदा से शजर पत्थर खरीदकर ले जाते थे। शजर पत्थर आम पत्थरों की तरह ही रंगीन नजर आता है। मगर, पहचान शजर पत्थर से जुड़े लोग ही कर पाते हैं।