प्रयागराज : मोक्ष के लिए इस पेड़ से लोग लगाते थे छलांग…जिसके नीचे बहती है सरस्वती नदी !

धर्म नगरी..संगम नगरी..कुंभ नगरी..मोक्ष नगरी कई नामों से विख्यात प्रयागराज को जानने-समझने को लेकर मेरे मन में अनेकों सवाल उमड़ते-घुमड़ते रहे। पौराणिक और दंत कथाओं ने उस कौतूहल को बढ़ा दिया।…तो सोचा अपने कदम प्रयाग की तरफ बढ़ाएं। उन धार्मिक, प्राचीन स्थलों से रूबरू हों। मेरी खास जिज्ञासा सैकड़ों वर्ष पुराने अक्षयवट को जानने की हुई, तो हम बढ़ चले प्रयागराज के ऐतिहासिक किले की ओर। दरअसल, मैंने अक्षयवट के बारे में काफी सुना था, सोचा करीब से जान-समझ लें।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रयागराज में स्नान के बाद जब तक अक्षयवट का पूजन-दर्शन नहीं हो, पुण्य नहीं मिलता। बता दें, मुगल शासक अकबर किले के भीतर बने पातालपुरी मंदिर स्थित अक्षयवट सबसे पुराना मंदिर है। यहां पहुंचने के बाद मुझे अक्षय वट वृक्ष के पास कामकूप नाम के तालाब के बारे में जानकारी मिली। मैं दंग रह गया। कहा जाता है, मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग यहां आते थे और वृक्ष पर चढ़कर तालाब में छलांग लगा देते थे। इस कहानी ने मेरी उत्सुकता और बढ़ा दी।

जमीन के नीचे पातालपुरी मंदिर

प्रयागराज स्टेशन उतरने के बाद मैंने टैक्सी बुक की और बढ़ चला संगम की तरफ। उत्तर प्रदेश सरकार महाकुंभ 2025 की तैयारियों में जुटी है। शहर का कायाकल्प हो रहा है, जिसका नजारा देखने को मिला। जगह-जगह सौंदर्यीकरण के काम होते दिखे। प्रयागराज का धर्म और आस्था से कितना गहरा नाता है, यह शहर को देखकर महसूस हुआ। यहां सैकड़ों ऐसे मंदिर हैं, जो अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इन्हीं बेहद प्राचीन मंदिरों में से एक है पातालपुरी मंदिर। नाम के अनुसार ही यह जमीन के नीचे है। संगम तट के किनारे मौजूद है, ऐतिहासिक अकबर का किला। इस किले के भीतर एक तहखाने जैसे स्थान में यह मंदिर आज भी अपनी कई विशेषताओं के साथ विद्यमान है। इस प्राचीन मंदिर में 43 देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं।

अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल

थोड़ी देर में हम अकबर का किला के सामने खड़े थे। जितना पढ़ा-सुना था, उससे कहीं ज्यादा आकर्षक पाया। वर्तमान में इस किले का कुछ हिस्सा ही पर्यटकों के लिए खुला है। शेष भाग का प्रयोग भारतीय सेना करती है। सन 1575 में बने इस किले में तीन बड़ी गैलरी हैं, जहां पर ऊंची मीनारें हैं। अंदर जाने के बाद पता चला पर्यटकों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की इजाजत है। इसके अलावा, यहां अक्षयवट के नाम से मशहूर बरगद का एक पुराना पेड़ पातालपुर मंदिर भी है।

…तब अक्षयवट ही दिखाई दिया

अक्षयवट से जुड़े किस्से-कहानियों की सच्चाई जानने वहां मौजूद पुजारी के पास पहुंचे। पुजारी ने बताया, पौराणिक कथाओं के अनुसार जब एक ऋषि ने भगवान विष्णु से ईश्वरीय शक्ति दिखाने को कहा। तब उन्होंने क्षण भर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया था। फिर इस पानी को गायब भी कर दिया। इस दौरान जब संसार की सारी चीजें पानी में समा गई थी, बावजूद अक्षयवट का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था। कहा तो ये भी जाता है कि, मुगलों ने इसे जला दिया था। इसकी वजह स्थानीय लोगों का इसकी पूजा करने के लिए किले में आना था। मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे जो भी इच्छा व्यक्त की जाती थी वो पूरी होती थी

मोक्ष प्राप्ति के लिए पेड़ से लगाते थे छलांग

इस किले में एक सरस्वती कूप भी बना है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहीं से सरस्वती नदी जाकर गंगा-यमुना में मिलती थी। स्थानीय पंडित ने बताया, अक्षयवट वृक्ष के पास कामकूप नाम का तालाब था। मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग यहां आते थे और वृक्ष पर चढ़कर तालाब में छलांग लगा देते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग अपनी भारत यात्रा के दौरान यहां आया था। उसने इस स्थान का दौरा किया था। ह्वेनसांग ने इस संबंध में लिखा भी है।

ह्वेनसांग की किताब में भी जिक्र

अब तक मिल रही जानकारी ने मेरे सामने एक ऐसा रोमांचक दृश्य पैदा किया। मैं उन कहानियों में ऐसा समाया कि, जिज्ञासा और बढ़ने लगी। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कामकूप तालाब का जिक्र अपनी किताब में भी किया। उसके जाने के काफी बाद मुगल शासक अकबर ने यहां किला बनवाया। इस दौरान उसे कामकूप तालाब और अक्षयवट के बारे में पता चला। तब अकबर ने पेड़ को किले के अंदर और तालाब को बंद करवा दिया था। कहते हैं, अक्षयवट वृक्ष को अकबर और उसके मातहतों ने कई बार जलाकर और काटकर नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हुए।

प्रभु राम ने इस वृक्ष के नीचे गुजारी थी रातें

अक्षयवट की महत्ता और सैकड़ों वर्षों बाद भी लोगों में उसके प्रति आस्था ने मुझे भी बांध लिया। जानकार बताते हैं, वनवास के दौरान प्रभु श्री राम और माता सीता ने वन जाते समय इसी अक्षयवट वृक्ष के नीचे तीन रात तक निवास किया था। इसलिए हिन्दू धर्मावलम्बियों में इस वृक्ष के प्रति आस्था अपार है।

अक्षयवट के नीचे बहती है सरस्वती नदी !

प्रयाग में तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। सरस्वती अदृश्य है। अक्षयवट के बारे में पता करने पर बड़ी जानकारी मिली। स्थानीय पुजारी के अनुसार, अक्षयवट के नीचे से ही अदृश्य सरस्वती नदी बहती है। संगम स्नान के बाद अक्षयवट का दर्शन और पूजन यहां वंशवृद्धि से लेकर धन-धान्य की संपूर्णता तक की मनौती पूर्ण होती है।

महाकुंभ 2025 में करोड़ों श्रद्धालुओं के संगम नगरी आने का अनुमान है। मान्यता है कि, संगम स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। आगंतुकों को अक्षयवट के दर्शन उन्हें अवश्य रोमांचित करेगा, जब पता चलेगा कि मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग इस पेड़ से छलांग लगाते थे। सरस्वती कूप में कूदकर लोग जान देते थे क्योंकि उनका मानना था कि इसके जल से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस स्थान से जुड़ी अनेकों कहानियां आपको बेहद रोचक लगेंगी। बेहद प्राचीन मूर्तियां और कहानियां लोगों को यहां घूमने के लिए आकर्षित करती हैं।