हरिहरपुर घराना : जहां जाति, पंथ, मजहब से ऊपर है संगीत

उत्तर प्रदेश की सांगीतिक विरासत की ख्याति देश-दुनिया में रही है। पीढ़ियों से कई घराने संगीत की सेवा में जुटे रहे हैं। इन्हीं में से एक है, हरिहरपुर घराना। यूपी के आजमगढ़ में 600 वर्ष पुराना शास्त्रीय संगीत का हरिहरपुर घराना संगीत के लिए जिले में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। सावन में काली घटाओं के बीच कजरी सुनने का अलग ही आनंद आता है।वक़्त के साथ कजरी की धुन इतनी लोकप्रिय हुई कि, शास्त्रीय संगीत के घरानों ने भी इसे अपना लिया। हरिहरपुर घराना को इस विधा में महारत हासिल है।
हरिहरपुर घराना संगीत के लिए दुनियाभर में मशहूर है। घराना के कलाकारों ने गायन, संगीत, तबला-वादन आदि में देश ही नहीं, विश्व में अपनी कला का डंका बजाया। स्वर साधक पद्मविभूषण छुन्नू लाल मिश्रा ने इस घराने को शिखर तक पहुंचाया। उत्तर प्रदेश और हरिहरपुर घराने का नाम दुनियाभर में रोशन किया। करीब छः शताब्दी से संगीत की सेवा में जुटा यह घराना अपनी विशिष्ट पहचान के साथ कायम है।

हर घर में सुबह-शाम रियाज

आजमगढ़ जिले का हरिहरपुर गांव संगीत के लिहाज से ‘हरिहरपुर घराने’ के रूप में विख्यात है। इस घराने से संबद्ध कलाकार संगीत के माध्यम से भाइचारे की डोर को ऊंचाइयों पर पहुंचाने में जुटे हैं। इस घराने के बच्चों में संगीत इतना रच-बस गया है कि, हर घर में सुबह-शाम रियाज देखी-सुनी जा सकती है। काफी छोटी उम्र से ही बच्चे संगीत की अपनी पुरानी विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे हैं। युवकों में संगीत के प्रति समर्पण का भाव इस कदर है कि, खेतों में काम करते हुए भी इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।

जाति, पंथ, मजहब से ऊपर संगीत

हरिहरपुर संगीत घराने की खासियत है कि, यहां संगीत की शिक्षा लेने के लिए हर जाति, हर धर्म के बच्चे आते हैं। घराने का मानना है कि संगीत ही ऐसी विधा है, जो जाति, पंथ, मजहब से हटकर गंगा-जमुनी तहजीब को कायम रखती है। संगीत के बदले स्वरूप में हरिहरपुर घराना अपनी विरासत को संभाले हुए है। गायन की सुप्रसिद्ध विधा कजरी, चैता, फगुआ आदि को बचाने के लिए हरिहरपुर घराना लगातार प्रयास कर रहा है। संगीत संस्थान के माध्यम से हर वर्ष अगस्त माह में ‘हरिहरपुर कजरी महोत्सव’ का आयोजन होता है, जिसमें घराने के लोग संगीत की अपनी ऐतिहासिक विरासत को संजोने का प्रयास करते हैं।

बदलते संगीत के बीच भी कायम

बदलते समय के साथ संगीत भी बदला। संगीत के कद्रदानों का रुझान भी बदलता गया। मगर, पाश्चात्य संगीत के बढ़ते प्रभाव के बीच शास्त्रीय और लोकगीत को पसंद करने वालों की चाहत कम नहीं हुई। हरिहरपुर घराना लगातार प्रयासरत है कि सांगीतिक विधा को किस प्रकार संजोया जाए। संगीत के क्षेत्र में अपना नाम कमाने घराने के कई कलाकारों ने अन्य शहरों का रुख किया।

हरिहरपुर: ‘संगीत का गुरुकुल’

हरिहरपुर गांव ‘धर्मनगरी’ काशी से करीब 106 किलोमीटर और आजमगढ़ शहर मुख्यालय से महज छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पांच हजार की आबादी वाला यह गांव हरिहरपुर घराना के रूप में विख्यात है। ‘संगीत का गुरुकुल’ कहे जाने वाले इस गांव के लोगों में अपनी कला के प्रति असीम समर्पण नजर आता है। सुबह-शाम सारंगी-तबले के साथ हारमोनियम की जुगलबंदी के बीच घर-घर से निकलने वाले सुर आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे।

यूं गांव से ‘घराना’ बना हरिहरपुर

हरिहरपुर के घराना के रूप में विख्यात होने के पीछे रोचक कहानी है। दरअसल, प्रयागराज के हंडिया निवासी दो सगे भाई पंडित हरिनाम दास और सरिनाम दास को गीत-संगीत से बेहद प्यार था। संगीत की कद्र किए जाने की जानकारी भर पर दोनों भाई घर-बार छोड़ हरिहर गांव में बस गए। आजमगढ़ को बसाने वाले आजम शाह के पूर्वजों ने संगीत कला से खुश होकर 989 बीघा जमीन दान दे दी।

हरिनाम और सरिनाम दोनों भाईयों ने गायन-वादन में निपुणता हासिल की। मगर, सरिनाम के ब्रह्मचर्य होने से हरिनाम का कुनबा बढ़ता गया।

हरिहरपुर गांव के लोग भी गीत-संगीत के कद्रदान थे, लिहाजा गांव की पहचान कब ‘घराना’ बन गई पता ही नहीं चला। दास परिवार ने कजरी, दादरा, ठुमरी, चैता, फगुआ आदि गायन-वादन को सुरों में ऐसे पिरोया कि, समूचा गांव संगीत का गुरुकुल कहलाने लगा।

पढ़ाई के साथ संगीत की शिक्षा

‘हरिहरपुर संगीत घराना’ के नाम से प्रसिद्ध इस गांव में बच्चों को पढ़ाई के साथ घर में ही संगीत की शिक्षा दी जाती है। बच्चे के पिता और दादा उन्हें यह शिक्षा देते हैं, जो आगे चलकर गांव का नाम रोशन करते हैं। सुर और ताल की नर्सरी कहे जाने वाले आज़मगढ़ के इस गांव ने सदियों से संगीत परंपरा का निर्वहन करते हुए अपनी अलग छाप छोड़ी है।

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले का हरिहरपुर गांव खुद में बेमिसाल है। संगीत के प्रति गांववासियों का समर्पण अद्भुत है। राहुल सांकृत्यायन, पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, कैफ़ी आज़मी और छन्नू लाल मिश्र की भूमि पर संगीत की धारा आज भी बह रही है। संगीत के माध्यम से गंगा-जमुनी तहजीब आज भी बरकरार है। ‘संगीत की नर्सरी’ में आज भी नई पौध तैयार हो रही है, जो बदस्तूर जारी रहेगी।