फिरोजाबाद: ‘कांच नगरी’ ही नहीं, इतिहास के पन्ने समेटे एक जीवंत शहर

‘पहले इश्क की तरह है ये शहर, फिरोजाबाद…।। किसी शायर ने अपने शहर की याद में ये पंक्तियां लिखी। उत्तर प्रदेश का फिरोजाबाद जिला जिसे ‘कांच की राजधानी’ या ग्लास कैपिटल भी कहते हैं, खुद में सदियों का इतिहास, किस्से, कहानियां समेटे है। पारंपरिक कांच की चूड़ियों के उत्पादन के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध ये शहर, जीवंत है। यहां घर-घर में चूड़ियां बनती हैं। ‘सुहागनगरी’ के नाम से विख्यात इस शहर का प्राचीन नाम चन्द्वार (चंद्रवाड़) था। जैन राजा चंद्रसेन ने चन्द्वार बसाया था। यहां हिन्दू मंदिरों के साथ-साथ मुगलकालीन शाही मस्जिद और जैन मंदिर भी हैं।

फिरोजाबाद शहर की अपनी खासियत है। यह शहर आजादी की लड़ाई का भी गवाह रहा। यहां के लोग भारत छोड़ो आंदोलन, खिलाफत आंदोलन, नमक सत्याग्रह में शामिल हुए। कईयों को जेल भी हुई थी। बाद के वर्षों में 1929 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, 1935 में खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमांत गांधी), 1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू और 1940 में सुभाष चंद्र बोस फिरोजाबाद आए थे।

1566 में मिला फिरोजाबाद नाम

इतिहासकार बताते हैं, वर्ष 1566 में मुगल शासक अकबर के शासनकाल में फिरोज शाह मंसब डार की ओर से फिरोजाबाद नाम दिया गया था। बताया जाता है, अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल इस शहर से होते हुए तीर्थयात्रा को जा रहे थे, लेकिन उन्हें लुटेरों ने लूट लिया। उनके अनुरोध पर अकबर ने अपने मनसबदार फिरोज शाह को यहां भेजा। प्रमाण के तौर पर निगम के सामने फिरोज शाह की कब्र है।

कई जिलों से रहा जुड़ाव

ब्रिटिश काल में फिरोजाबाद इटावा जिले में शामिल था। कुछ समय बाद यह अलीगढ़ जिले से जुड़ गया। 1832 में जब सादाबाद को नया जिला बनाया गया, तो फिरोजाबाद को इससे जोड़ दिया गया। सालभर बाद यानि 1833 में फिरोजाबाद को आगरा में मिला दिया गया। आख़िरकार, फिरोजाबाद जिले के रूप में 5 फरवरी, 1989 को अस्तित्व में आया।

दिलचस्प है चूड़ी निर्माण का इतिहास

फिरोजाबाद की बातें कांच की चूड़ियों और बर्तनों के बिना अधूरी हैं। यहां कांच के कारखाने पीढ़ी दर पीढ़ी पारंपरिक तरीकों से चलाए जाते रहे हैं। गलियों में घूमते हर तरफ रंग-बिरंगी आकर्षक चूड़ियां देख आपका मन रंगीन हो जाएगा। ‘साहित्यरत्न’ गणेश शर्मा (प्राणेश) द्वारा लिखित और वर्ष 1962 में प्रकाशित पुस्तक ‘फिरोज़ाबाद परिचय’ के अनुसार, यहां कांच निर्माण की शुरुआत चंद्रवाड़ के राजाओं तथा आगरा के मुगल शासकों की राजधानी बनने से तकरीबन 250 से 300 साल पहले मानी जाती है। दरअसल, गांव उरमुरा और रपड़ी में आसानी से रेता और सींग प्राप्त हो जाते थे। इसलिए फिरोजाबाद के निवासी अपने मकान के पास ही छोटी भट्टी तैयार कर कांच की चूड़ियां बनाने लगे थे। तब चूड़ियां न तो आकर्षक होती थीं और न ही उनका कोई रंग था।

1910 में स्थापित हुआ पहला कारखाना

फिरोजाबाद समय के साथ बदलता गया। देहरादून में बंद हो चुकी कांच फैक्ट्री से जर्मन विशेषज्ञ फिरोजाबाद आए। उन्होंने साल 1910 में यहां पहला कारखाना ‘द इंडियन ग्लास वर्क्स’ स्थापित किया। शहर के सेठ नंदराम के प्रयासों ने कारखाना स्थापित करने में सहयोग किया। इस कारखाने की भट्टी में कोयले की गैस से सिर्फ कांच पकाया और ब्लॉक ग्लास बनाया जाता था। ‘द इंडियन ग्लास वर्क्स’ के पैर जमते ही फिरोजाबाद में कांच बनाने की नींव पड़ी। इसके बाद अन्य जगहों पर भी कांच जाने लगे। शुरुआती दौर में बनी चूड़ियां सिर्फ लाल, पीले, नीले रंग की मोटी और भारी हुआ करती थी। लेकिन, समय के साथ चूड़ियों को आकर्षक बनाया जाने लगा। वर्त्तमान में फैज़ाबाद की चूड़ियों की मांग देश ही नहीं विदेशों में भी है।

चूड़ी उद्योग के जनक हाज़ी रुस्तम उस्ताद

फिरोजाबाद चूड़ी उद्योग का जनक हाजी उस्ताद रुस्तम को कहा जाता है। उनकी कब्र आज भी फिरोजाबाद में है। उस्ताद रुस्तम यहीं रहकर चूड़ियां बनाते थे। धीरे-धीरे यह काम शहर में फैल गया। वर्तमान समय में सैकड़ों फैक्ट्रियां चूड़ी निर्माण कार्य करती है। कहते हैं, 1920 में चूड़ियों के आधुनिक कारखाने की नींव हाज़ी रुस्तम उस्ताद ने रखी थी। हाजी कल्लू उस्ताद, कादिर बक्स और उस्ताद भूरे खां का उत्साह, मेहनत और लगन से फिरोजाबाद में सुंदर चूड़ियां बनने लगी। ये सभी केमिकल का काम करने और रंग बनाने में माहिर थे। इन्होंने ही लकड़ी के बेलन का इस्तेमाल कर चूड़ियां बनाना शुरू किया। आख़िरकार, इनकी मेहनत रंग लाई। फिरोजाबाद की चूड़ियों की खनक चारों ओर सुनाई देने लगी।

मुगलकालीन इतिहास का गवाह शाही मजिस्द

फिरोजाबाद शहर ऐतिहासिक शहर है। आस्था के कई स्थल भी हैं। शहर के बीचोबीच स्थित है, शाही मस्जिद। मुगलकालीन इतिहास का जीता-जागता उदाहरण। इस मस्जिद का निर्माण 1648 ई में शुरू हुआ था, जिसे बनकर तैयार होने में करीब 5 साल लगे थे। मुगल शासक शाहजहां ने इसका निर्माण करवाया था। शाही मस्जिद की वास्तुकला लोगों को आकर्षित करती है। मस्जिद में तीन गुंबद हैं। वहीं, इसका प्रांगण भी काफी बड़ा है। यह फिरोजाबाद की सबसे प्राचीन मस्जिद है। आज भी यहां नमाज के लिए शहर के कोने-कोने से लोग आते हैं। मस्जिद की खास बात है कि इसमें इंडो-इस्लामिक आर्किटेक्चर का प्रयोग हुआ है।हालांकि, अब कुछ अवशेष ही शेष हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से फिरोजाबाद की दूरी तकरीबन 294 किलोमीटर है। वहीं, ताजनगरी आगरा से महज 47 किलोमीटर दूर है। पर्यटन के लिहाज से भी ये
स्थान खासा लोकप्रिय है। शाही मस्जिद के अलावा कई हिन्दू और जैन मंदिर इस शहर के प्रमुख आकर्षणों में एक हैं।

वैष्णो देवी मंदिर

फिरोजाबाद जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, मां वैष्णो का मंदिर। यहां हर वर्ष नवरात्र में मेला लगता है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि, इस मंदिर में आने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साल 2010 में इस मंदिर में जम्मू स्थित मां वैष्णो मंदिर से अखंड ज्योति लाई गई थी। पर्यटकों/श्रद्धालुओं के लिए यह विशेष आकर्षण का केंद्र है।

श्री हनुमान मंदिर

जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यमुना नदी किनारे हनुमान नंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है। हर मंगलवार श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। इसे पसीने वाला मंदिर भी कहा जाता है। यहां महाकाल मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है। ईश्वर के दर्शन को आने वाले यमुना में डुबकी अवश्य लगाते हैं।

जैन मंदिर

फिरोजाबाद शहर से तकरीबन 8 किलोमीटर दूर जैन मंदिर है। यहां महावीर स्वामी की प्रतिमा है। मंदिर की वास्तुकला बेहद आकर्षक है। इतिहासकार बताते हैं, वर्ष 1976 में मंदिर में 45 फीट लंबी और 12 फीट चौड़ी भगवान वाहुवलि स्वामी की प्रतिमा स्थापित हुई थी, जिसका वजन 130 किलोग्राम है। यहां चंद्रप्रभु की मूर्ति भी स्थापित है।

कोटला किला-अशोक स्तंभ

कोटला किला का निर्माण क्षेत्र में पानी की समस्या के समाधान के लिए सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक ने करवाया था। किले में शानदार मुगल प्रेरित वास्तुकला का नमूना देखा जा सकता है। यह महल तुगलकाबाद राजवंश के शासन का प्रतीक है, जो उनके महत्व को बताता है। फ़िरोज़ाबाद शहर से प्राचीन किले की दूरी महज 12 किलोमीटर है। फिरोज़ शाह कोटला किला परिसर के भीतर सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक अशोक स्तंभ है। यह प्राचीन स्तंभ संभवतः तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है। कहा जाता है इसे हरियाणा के अंबाला में बनाया गया था। फ़िरोज़ शाह तुगलक ने उसे यहां लाया था।

चंद्रसेन का किला

इसी तरह, फिरोजाबाद के खास पर्यटन स्थलों में से एक चंद्रसेन का किला भी है। राजा चंद्रसेन का किला प्राचीनतम इतिहास का साक्षी रहा है। इस किले को राजा चंद्रसेन के बेटे ने 13वीं शताब्दी में बनवाया था।इतिहासकारों की मानें तो यहां कई ऐतिहासिक युद्ध हुए हैं। किले का निर्माण राजा चंद्रसेन के बेटे चंद्रपाल ने करवाया था। सन 1193 के आसपास राजा जयचंद और मोहम्मद गौरी के बीच भीषण युद्ध इसी जगह हुआ था। यह किला आज भले ही खंडहर का रूप ले चुका हो, लेकिन सदियों का इतिहास खुद में समेटे है। जैन विद्वानों की मान्यता थी, कि ये भगवान के पिता वासुदेव द्वारा शासित रहा है।