उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड अपने सौंदर्य के साथ ऐतिहासिकता की चादर लपेटे है। यहां की सुंदरता आपका मन मोह लेगी। खासकर बारिश के दिनों में बादलों के साथ रिमझिम फुहारें भीतर तक रोमांचित कर देंगी। घुमक्कड़ी के शौकीन खुद को इस मोहपाश से बचा नहीं पाते हैं। बुंदेलखंड का सुप्रसिद्ध जिला महोबा। वीरों की भूमि। महोबा स्वयं में एक अध्याय है। मैंने अपनी यात्रा के लिए महोबा के चरखारी को चुना। यहां प्रकृति का सौंदर्य, आस्था, अध्यात्म, वास्तुकला और सैकड़ों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत बाहें फैलाए खड़ी है।…बैग उठाया और निकल पड़ा ‘बुंदेलखंड का कश्मीर’ कहे जाने वाले चरखारी।
राजधानी लखनऊ से यूपीएसआरटीसी की बस महोबा के लिए रवाना हुई। कुछ घंटों के सफर के बाद मैं अपने गंतव्य तक पहुंच गया। वहां की आबोहवा बिलकुल जुदा। शहरी शोर, भीड़ से अलग सुकून और शांति मिली। नुक्कड़-चौराहों से ही बुंदेली वेश-भूषा, बोली और रहन-सहन छूकर गुजरने लगी। आपको पता है, महोबा कभी चरखारी रियासत की राजधानी थी। महोबा का प्राचीन नाम ‘महोत्सव नगर’ था, अर्थात महान त्योहारों का शहर। मेरे कदम जैसे-जैसे बढ़ रहे थे, किस्से-कहानियां दिलोदिमाग में घूमने लगी। कई पुराने मकान बिन कुछ कहे, बहुत कुछ कह गए। आल्हा-ऊदल की नगरी महोबा मुझे अब और रोमांचित करने लगा।
चंदेल शासनकाल के इतिहास से होंगे रूबरू
चरखारी, महोबा से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चरखारी अपने खूबसूरत प्राकृतिक धरोहर के लिए विख्यात है। यहां के तालाब साल भर पानी से भरे रहते हैं। चरखारी का कोठी तालाब मुझे बेहद आकर्षित किया। घूमने के दौरान पता चला चरखारी में कई धार्मिक स्थल हैं। यह पांडव ऋषि की तपस्थली भी है। चंदेल शासन काल की इमारतों की वास्तुकला देखते ही बनती है। चरखारी में कदम जैसे-जैसे आगे बढ़े, इतिहास से रूबरू होता गया।
‘बुंदेलखंड की सुनो कहानी, बुंदेलों की बानी में
पानीदार यहां का घोड़ा, आग यहां के पानी में’।
आबादी के बीच से गुजरते हुए यह बुंदेली लोकगीत कानों में गई। शायद कोई मां अपने बच्चे को लोरी सुना रही थी। ये पंक्तियां उस भूमि की वीर गाथा समझने के लिए पर्याप्त था।
सदियों पहले जल संरक्षण का अद्भुत मॉडल
चरखारी की लोकप्रियता को चार चांद लगाता है सप्त सरोवर। इन सात विशाल सरोवरों की खासियत ये है कि सभी सरोवर एक-दूसरे से जुड़े हैं। बारिश के दिनों में पानी एक-एक कर सबको भर देता है। सदियों पहले ऐसा अद्भुत निर्माण, रोमांचित करता है। हालांकि, बाद के वर्षों में बुंदेलखंड पानी की कमी के लिए सुर्ख़ियों में रहा। लेकिन, दशकों पहले जल संरक्षण का ऐसा मॉडल बुंदेलखंड के चरखारी के सिवा आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगा। यहां के ‘सप्त सरोवर’ साल भर पानी से भरे रहते हैं। कमोबेश यह डल झील की झलक देती है। शायद इन्हीं वजहों से इसे ‘बुंदेलखंड का कश्मीर’ कहते हैं।
बुंदेलखंड की सबसे संपन्न रियासत थी चरखारी
सप्त सरोवर में सबसे पहला है, गोला तालाब। यह तालाब चारों ओर से गोल है। बस्ती और बरसात का पानी सबसे पहले इसी तालाब में आता है। यह पूरा तालाब जब भर जाता है तो इसके बाद यहां का पानी कोठी तालाब में चला जाता है। इस तालाब के करीब राजाओं की कोठी बनी थी। इसी कारण इसका नाम कोठी तालाब पड़ा। कोठी तालाब से पानी होकर जय सागर तालाब में मिलता है। इस तालाब को राजा जयसिंह ने बनवाया था। जय सागर से पानी होकर मलखान सागर में जाता है। यहां से पानी होकर रपट तलैया में आता है। रपट तलैया का नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि बस्ती का सारा पानी यहां भर जाने के बाद यहां से पानी आगे रतन सागर में जाता है। रतन सागर को राजा रतन सिंह ने खुदवाया था।
स्थानीय लोगों से सुनी इन बातों से मैं सरोवरों के निर्माण की रोचक कहानियों में बंधता चला गया। आजादी से पहले के कालखंड में चरखारी बुंदेलखंड की सबसे संपन्न रियासतों में शुमार थी। यहां के शासकों ने मंदिरों के साथ अन्य ऐतिहासिक भवनों का निर्माण करवाया था। रियासत के उस दौर में ही ये सप्त सरोवर बनवाए गए थे।
गोविन्द वल्लभ पंत ने दिया था नाम
कस्बे में कान्हा के प्रतीक रूप में बने 108 मंदिर क्षेत्र की शोभा बढ़ाते हैं। सरोवर के बीच में एक छोटा सा मंदिर बनाया गया है, जिसमें वासुदेव जी की खड़ी प्रतिमा है। इस प्रतिमा के सिर पर सूप के साथ भगवान श्रीकृष्ण का बाल रूप बना है। श्रृंखलाबद्ध तालाबों का जलस्तर समान रहता है। जब भगवान श्रीकृष्ण के पैर तक पानी पहुंच जाता है, तब माना जाता है सरोवर अपनी क्षमता से भर गया। उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत ने चरखारी की हसीन वादियों को देखकर इसे ‘बुंदेलखंड के कश्मीर’ की संज्ञा दी थी।
चक्रव्यूह के आधार पर बना मंगल गढ़ दुर्ग
मेरे कदम अब बढ़ चले थे, मंगल गढ़ दुर्ग की तरफ। वैसे तो बुंदेलखंड को किलों की भूमि कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में अनेकों किले हैं। लेकिन, मंगलगढ़ दुर्ग की बात ही अलग है। वर्तमान में यह किला भारतीय सेना के कब्जे में है। चंदेलों के गुजर जाने के सैकड़ों वर्ष बाद राजा छत्रसाल के पुत्र जगतराज ने इस किले का निर्माण करवाया था। इस किले पर सात तालाब हैं- बिहारी सागर, राधा सागर, सिद्ध बाबा का कुंड, रामकुंड, चौपरा, महावीर कुंड और बख्त बिहारी कुंड। चरखारी किला पर अष्टधातु तोपों को देख मैं रोमांचित हो गया। पता चला ये तोप पूरे भारत में मशहूर हैं।
गौरा पत्थर हस्तकला करीब से देखा
महोबा जिला देशभर में अपने बेहतरीन गौरा पत्थर हस्तकला के लिए प्रसिद्ध है। हस्तकला में इस्तेमाल होने वाला गौरा पत्थर एक सफेद रंग का पत्थर होता है, जो ख़ासतौर पर इसी क्षेत्र में पाया जाता है। गौरा पत्थर हस्तकला की विशेष विधा है, जिसकी पहचान शिल्प के क्षेत्र में विशिष्ट है। महोबा के कारीगरों को दुनिया भर में गौरा पत्थर हस्तशिल्प के बेजोड़ नमूने और अद्वितीय कलाकृतियों के लिए जाना जाता है। अपनी चरखारी यात्रा के दौरान मुझे गौरा पत्थर कला को करीब से देखने-समझने को मिला।
धातु शिल्प का सानी नहीं
धातु से कारीगरी में महोबा के शिल्पकारों की कोई सानी नहीं है। तांबा, पीतल, जस्ता और लोहे से बनी अनेकों कलाकृतियां देश के विभिन्न हिस्सों में पसंद की जाती हैं। इन कलाकृतियों में धार्मिक महत्व और ऐतिहासिकता को उजागर करती मूर्तियां, सजावटी सामान आदि प्रसिद्ध हैं। यहां अष्टधातु से निर्मित भगवान शिव की मूर्ति तथा भगवान विनायक की मूर्तियां बेहद पसंद की जाती हैं। महोबा में अब यह लघु उद्योग का दर्जा हासिल कर चुका है। यह उद्योग के बड़े भाग को रोजगार प्रदान करता है। अपने चरखारी दौरे में मैंने धातु शिल्प की बेहतरीन कलाकारी देखी।
बुंदेलखंड के महोबा की चरखारी यात्रा दौरान वहां के व्यंजन से रूबरू हुआ। बुंदेली खान-पान बेहद लजीज और स्वादिष्ट रहा। पूरे दिन घूमते-फिरते अब शाम हो चली थी। थकान के बावजूद मन में संतोष के साथ वापसी की राह पकड़ी। अब मेरे साथ चरखारी की अविस्मरणीय यादें और खूबसूरत यात्रा अनुभव है।