दयालबाग : राधास्वामी पंथ की अद्भुत ‘विरासत’ से हों रूबरू

राधास्वामी पंथ के मानने वाले भारत ही नहीं पूरी दुनिया में फैले हैं। उत्तर प्रदेश के आगरा जिला स्थित दयालबाग इसका प्रमुख केंद्र है। यहां राधास्वामी सत्संग सभा का मुख्यालय है। दयालबाग में बने स्वामी बाग की खूबसूरती विख्यात है। चारों ओर सफेद संगमरमर पत्थर पर अद्भुत नक्काशी। पत्थरों को निखारकर उस पर उकेरी गई फलों और सब्जियों की आकृति आगंतुकों को आकर्षित करती है। इमारत के गुंबद पर सोने का शिखर बना है। इस इमारत का निर्माण कार्य वर्ष 1904 में शुरू हुआ था, जो 120 साल बाद भी जारी है।

आगरा, ऐतिहासिक स्मारकों और धार्मिक स्थलों से भरपूर विशेष महत्व वाला शहर है। दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल यहां प्रमुख पर्यटन केंद्र है। राधास्वामी संप्रदाय के लिए दयालबाग महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। इससे जुड़े कई किस्से-कहानियां प्रचलित हैं।

क्या है राधा स्वामी संप्रदाय?

राधास्वामी एक आध्यात्मिक परंपरा है। इसकी स्थापना आगरा के ही शिव दयाल सिंह ने 1861 में बसंत पंचमी के दिन की थी। उसके बाद ये संस्था निरंतर बढ़ती चली गई। दरअसल, इस संप्रदाय की स्थापना के पीछे एक ऐसे समाज की कल्पना की गई, जो आध्यात्मिक तौर पर तो उन्नत हो। सेवा भाव और सह अस्तित्व में भरोसा रखता हो। यह संस्था वास्तव में अध्यात्म, नैतिक जीवन, शाकाहारी आहार, विचार तथा सेवा का एक मेल है।

दयालबाग का ‘मुबारक कुआं’

राधा स्वामी संप्रदाय का प्रचार-प्रसार दुनिया भर में हुआ। लोग इसके साथ जुड़ते गए। संप्रदाय के अनुयायी शिव दयाल सिंह को ‘हुजूर साहब’ (हुजूर स्वामी) कहकर बुलाते थे। राधास्वामी सत्संग सभा के अनुयायी बताते हैं, वर्ष 1861 में हुजूर स्वामी ने सबसे पहले यहां पन्नी गली में सत्संग शुरू किया था। इसी दिन से राधा स्वामी पंथ प्रचलन में आया। उन्होंने इस जगह का नाम ‘दयालबाग’ रखा था। दयालबाग में एक कुआं है। यह ‘मुबारक कुएं’ के नाम से जाना जाता है।

दयालबाग कॉलोनी की ऐसे पड़ी नींव

राधा स्वामी सत्संग सभा के अनुयायी एक और किस्सा सुनाते हैं। हुजूर स्वामी हर सुबह जब घूमने जाते थे, तो वह दातून के बाद मुबारक कुएं के पानी का प्रयोग करते थे। राधा स्वामी सत्संग से जुड़े अनुयायी बताते हैं कि हुजूर स्वामी महाराज सुबह जब घूमने जाते थे तो वो दातून करने के बाद मुबारक कुएं के पानी का प्रयोग करते थे। 20 जनवरी 1915 को बसंत पंचमी के दिन हुजूर साहब ने ‘मुबारक कुएं’ के पास शहतूत के पौधे लगाए और दयालबाग कॉलोनी की नींव रखी। इस परिसर में ‘मुबारक कुआं’ और ‘शहतूत का पेड़’ आज भी संरक्षित है।

…और हेडक्वॉटर बन गया दयालबाग

राधा स्वामी सत्संग का हेडक्वॉटर दयालबाग में ही है। राधा स्वामी सत्संग के मौजूदा गुरु 8वें संत डॉ. प्रेम सरन सत्संगी यहीं निवास करते हैं। अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 20 लाख लोगों ने राधा स्वामी सत्संग के गुरुओं से दीक्षा ली है। समय के साथ आस्थावान लोगों की संख्या इस पंथ में तेजी से बढ़ी। वर्तमान समय में विश्व के 90 देशों में लोग राधास्वामी का अनुसरण करते हैं। इस संस्था की भले ही दुनिया भर में शाखा हो, मगर दयालबाग मुख्य तीर्थ स्थल के रूप में विद्यमान है।

हुजूर स्वामी की समाध

हुजूर स्वामी समाध की नींव, कुआं आधारित है। यह 52 कुओं पर आधारित है, ताकि भूकंप आने पर कोई असर न पड़े। पत्थरों को 60 फीट गहराई तक डालकर स्तंभ लगाए गए हैं। पत्थरों पर नक्काशी इस तरह है कि, पेंटिंग जैसी प्रतीत होती है। देखने वालों की आंखों में आश्चर्य तैर जाती है। सहसा, आपको लग सकता है कि ऐसी नक्काशी मशीन से ही संभव है, मगर ऐसा नहीं है। हर पत्थर को तराशने में महीनों लगे हैं। फल और सब्जी की बेल देखकर लगेगा कि ये अभी टपक पड़ेंगे। दो पत्थरों के बीच की जोड़ भी खूबसूरत है। समाध में लगाया गया संगमरमर राजस्थान से आया है।

मकराना, अंबाजी सहित अन्य जिलों के खदानों से आए पत्थर से समाध का निर्माण हुआ है।

कारीगरों की चौथी पीढ़ी काम में जुटी

ताजनगरी में राधा स्वामी मंदिर के मनमोहक मंदिर का निर्माण 120 साल बाद भी जारी है। कारीगरों की चौथी पीढ़ी यहां काम कर रही है। यह भले ही स्वामी बाग मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, लेकिन क्षेत्र दयालबाग है। राधास्वामी मत के अनुयायी बसंत पंचमी के दिन पूरी दुनिया से आगरा में इकठ्ठा होते हैं। इस मौके पर विशाल भंडारा होता है। पूरा दयालबाग क्षेत्र सजाया-संवारा जाता है।

बताया जाता है 1200 एकड़ में फैला वर्तमान का दयालबाग और स्वामीबाग पहले रेत का टीला हुआ करता था। राधास्वामी पंथ के अनुयायियों की कड़ी मेहनत और लगन ने दयालबाग को हरे-भरे क्षेत्र में तब्दील कर दिया। आज चारों तरफ हरियाली और ऊंचे पेड़ हैं। पक्षियों का कलरव है। पर्यटकों को ये नजारा लुभाता है।

ताज ही नहीं दयालबाग भी घूमने आते हैं पर्यटक

आगरा में ताजमहल के अलावा ऐतिहासिक किला पर्यटकों की पहली पसंद रही है। वहीं, दयालबाग भी आगंतुकों को खासा आकर्षित करता है। साल भर लोग यहां घूमने-फिरने आते हैं। यहां आने का सबसे अच्छा समय वसंत ऋतु माना जाता है। इस मौसम में बाग़ की खूबसूरती देखते बनती है। फरवरी से अप्रैल तक मौसम सुहावना रहता है। आध्यात्मिक चिंतन और शांत वातावरण का आनंद लेने के लिए यह आदर्श समय माना जाता है।

कैसे पहुंचें दयालबाग?

अगर, आप भी दयालबाग की सुंदरता को करीब से देखना चाहते हैं तो वहां तक पहुंचने के कई रास्ते हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ हवाई, ट्रेन और बस तीनों माध्यमों से जुड़ा है। बेहतर कनेक्टिविटी का लाभ आगंतुकों को मिल रहा है।

हवाई मार्ग

दयालबाग पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पंडित दीन दयाल उपाध्याय एयरपोर्ट है। शहर मुख्यालय से 5.7 किलोमीटर दूर है। आगरा में एक से दूसरे छोर तक जाने के लिए हवाई अड्डे से टैक्सी आदि उपलब्ध रहती है।

रेल मार्ग

आगरा में दो मुख्य रेलवे स्टेशन हैं- आगरा कैंट और आगरा फोर्ट। ये दयालबाग से क्रमशः 9.3 किलोमीटर और 7.7 किलोमीटर दूर हैं। दयाल बाग पहुंचने के लिए ऑटो, रिक्शा या टैक्सी भी ले सकते हैं।

सड़क मार्ग

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, हरियाणा, ग्वालियर और मथुरा सहित अन्य पास के शहरों से यात्रा करने वाले पर्यटक सड़क मार्ग से भी आ सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की राज्य परिवहन निगम की बसों के जरिए भी आगरा पहुंचना आसान और किफायती है। सड़क यात्रा में पर्यटक खूबसूरत नजारों का लुत्फ़ भी उठा सकते हैं।

परिवार के साथ छुट्टियां बिताने या किसी अविस्मरणीय यात्रा का प्लान बना रहे हैं तो दयालबाग आपको बेहतर अनुभव देगा। इस यात्रा की यादें आपको हमेशा रोमांचित करेगा।

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