सेंट जोंस सिमिट्री : जहां सो रहे 1500 से अधिक अंग्रेज, 167 साल बाद भी फूल चढ़ाने आते हैं वंशज

उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक मेरठ शहर की ख्याति देश ही नहीं विदेश में भी है। इतिहास के पन्ने पलटने पर मेरठ की तस्वीर में तमाम प्रमुख घटनाओं के रेखाचित्र मिलते हैं। इन्हीं में से एक है, लेखानगर स्थित सेंट जोंस सिमिट्री (कब्रिस्तान)। 1857 की क्रांति के केंद्र में रहे मेरठ में आज भी कई अंग्रेज सैनिक-अफसरों की कब्र हैं। मेरठ में क्रांतिकारियों के हाथों मारे गए अंग्रेजों के वंशज यहां आते हैं और नम आखों के साथ श्रद्धांजली देते हैं। अपने पूर्वजों को याद कर पर्यटक बेहद भावुक हो जाते हैं। मेरठ के इस कब्रगाह में 1500 से अधिक यूरोपियन लोगों की कब्रे मौजूद हैं।

सेंट जोंस चर्च सिमिट्री को 1810 में स्थापित किया गया था। अपनी स्थापना के 200 से अधिक साल बाद भी यह कब्रिस्तान विदेशियों के आकर्षण का केंद्र है। ईसाइयों के इस कब्रिस्तान में यूरोपीय सिपाहियों, 1857 के संग्राम में मारे गए अंग्रेज सैनिकों सहित कई अफसरों और उनके परिवार के सदस्यों को दफनाया गया था। सेंट जोंस चर्च की सिमिट्री कमेटी इसकी देखभाल करती है। यहां इंग्लैंड, आयरलैंड व स्कॉटलैंड के लोगों के शव दफ़्न हैं।

‘अपनों’ को याद कर भावुक हो जाते हैं वंशज

मेरठ कैंट स्थित सेंट जोंस चर्च अपनी भव्यता और प्राचीनता के लिए विख्यात है। चर्च से महज 150 मीटर दूर स्थित है, सेंट जोंस सिमिट्री। दरअसल, यह चर्च जितना पुराना है, उतना ही पुराना यहां का कब्रिस्तान है। भारत में अंग्रेजों के खिलाफ पहली आवाज़ 10 मई 1857 को मेरठ से ही उठी थी। ब्रिटिश राज के खिलाफ गदर में मुख्य निशाना अंग्रेज अफसर, सैनिक और कर्मचारी बने। इनमें अधिकांशतः ईसाई समाज से थे। मृतकों को सेंट जोंस सिमिट्री में दफनाया गया था। आज भी अंग्रेज पर्यटक अपने पूर्वजों की कब्र देखकर और पूर्वजों को याद कर भावुक हो जाते हैं। भींगी पलकों से उन्हें याद करते हुए फूल चढ़ाते हैं।

क्रिसमस के मौके पर आते हैं पर्यटक

हर साल क्रिसमस के आसपास विदेशी पर्यटक मेरठ आते हैं। कैंट एरिया घूमते हैं। स्थानीय लोगों से जानकारियां जुटाते हैं। किस्से-कहानियों और दस्तावेजों से मिली सूचना से पुरानी कड़ियां जोड़ते हुए अपने पूर्वजों को याद करते हैं। श्रद्धांजलि देते हैं। यहां कुछ समय बिताकर, भविष्य में फिर आने की इच्छा के साथ लौट जाते हैं।

मेरठ कब्रिस्तान का ऐसे हुआ निर्माण

यूरोपियन जब भारत आए और यहां रहने लगे तो उन्हें एक कब्रिस्तान की आवश्यकता महसूस हुई। मेरठ में रेसकोर्स के पास पहले एक छोटा कब्रिस्तान बनाया गया। समय के साथ इसका विस्तार होता गया। आख़िरकार, 1810 ई. में लेखानगर स्थित सेंट जोंस चर्च के करीब इस बड़े कब्रिस्तान को बनाया गया। यहां वर्तमान में 1500 से ज्यादा कब्रें हैं, इनमें अधिकांश अंग्रेजों और उनके परिजनों की है। मेरठ में रहने वाली बड़ी ईसाई आबादी आज भी इस कब्रिस्तान का प्रयोग करती है। तकरीबन, 23 एकड़ में यह कब्रिस्तान फैला है।

कैसा था वह ग़दर?

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 10 मई 1857 का दिन ऐतिहासिक है। दरअसल, 9 मई को उन 85 भारतीय सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया था, जिन्होंने चर्बीयुक्त कारतूस चलाने से मना कर दिया था। इन कारतूसों को मुंह से खोलना पड़ता था। अंग्रेजी हुकूमत ने दोषी सैनिकों को परेड ग्राउंड से विक्टोरिया पार्क स्थित जेल तक कपड़े उतारकर घुमाया, फिर जेल भेजा।

ब्रिटिश अफसरों के व्यवहार ने लोगों में विद्रोह पैदा कर दिया। 10 मई को छुट्टी के दिन अफसर, कर्मचारी अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। कुछ घर पर परिवार के साथ थे तो कुछ प्रार्थना के लिए चर्च गए थे। इसी बीच गुस्साई भीड़ ने अंग्रेज अफसरों के बंगले पर हमला बोल दिया। धीरे-धीरे विद्रोह की आग चारों ओर फ़ैल गई। विद्रोह को दबाने के प्रयास ने गदर का रूप ले लिया। मृत अफसरों के शव सेंट जोंस सिमिट्री में दफनाए गए। करीब 167 साल बाद भी उनके वंशज भारत आते हैं।

बच्चों की कब्रों की संख्या अधिक

सेंट जोंस सिमिट्री में अंग्रेज परिवारों के बच्चों की भी कई कब्र हैं। दरअसल, यूरोप से भारत आकर बसने की वजह से अंग्रेजों के बच्चे काफी बीमार रहने लगे थे। यहां का गर्म मौसम, बदला भोजन और पानी उन्हें सूट नहीं हुआ। बदले वातावरण में बच्चे खुद को ढाल नहीं पाए और बीमारी की वजह से उनका देहांत हो गया। इन बच्चों के शवों को सम्मान के साथ मेरठ के कब्रिस्तान में जगह दी गई।

सिपाहियों की कब्र रेजिमेंट के हिसाब से

मेरठ कब्रिस्तान में तीन प्रमुख सेक्शन हैं। ये अलग-अलग बने हैं। ये सेक्शन उन सिपाहियों की कब्रों के हैं, जिनकी देखरेख कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव कमीशन करता है। इस सेक्शन में उन सैनिकों के शरीर और अवशेष दफनाए गए हैं, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मारे गए थे। उनके नामों को पत्थरों पर खुदवाया गया है। उन कब्रों पर कशीदाकारी वाली मीनारें बनी हैं। गुंबद और स्मारक भी बनवाए गए हैं। इन सिपाहियों की कब्र रेजिमेंट के हिसाब से बनवाई गई हैं।

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के निशानों को तलाशते हुए इतिहास के पन्नों के नीचे से कई ऐसी जानकारियां सामने आती है, जो ज्ञानवर्धन करते हैं। मेरठ के ऐतिहासिक स्थल आजादी की पहली लड़ाई के सेनानियों की वीरता और साहस का स्मरण कराते हैं। साथ ही, ऐसे इतिहास से भी रूबरू करवाती है जो अब तक अनछुआ रह गया। सेंट जोंस सिमिट्री और उससे जुड़ी कहानियां उन इतिहास की परतें खोलती है।