यूपी से जैन धर्म का खास रिश्ता, बुंदेलखंड से कुशीनगर तक ऐतिहासिकता समेटे हैं

यूपी से जैन धर्म का खास रिश्ता, बुंदेलखंड से कुशीनगर तक ऐतिहासिकता समेटे हैं मंदिर

जैनियों की कई तीर्थ स्थली यूपी में, ऋषभनाथ से भगवान महावीर तक का खास रिश्ता

उ प्रदेश की विशाल धरती जैन धर्मावलंबियों के लिए समृद्ध है। उत्तर भारत के इस राज्य में छह तीर्थंकरों की जन्मस्थली है, जिनमें पांच का जन्म अयोध्या में हुआ। वाराणसी को 23 वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्मस्थान होने का गौरव प्राप्त हुआ। जैन धर्म का प्रभाव बड़े पैमाने पर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में देखा जा सकता है। यहां देवगढ़ एक महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल है, जहां किले के मंदिर पर इसकी छाप नजर आती है। जैन समाज का धर्म, शासन और संस्कृति पर असर रहा है।

उत्तर प्रदेश छह जैन तीर्थंकरों ऋषभनाथ, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ, अनंतनाथ और पार्श्वनाथ का जन्म स्थान रहा है। जैन धर्म से जुड़े कई प्राचीन मंदिरों की वजह से यूपी धर्मावलंबियों के लिए प्रमुख तीर्थस्थल रहा है। जैन धर्म श्रमण संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। इनके 24 तीर्थंकरों में पहले भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) तथा अंतिम भगवान वर्धमान महावीर हैं। तीर्थंकर यानी भगवान वो हैं जिन्होंने अपने तप से आत्मज्ञान प्राप्त किया। तीर्थंकर को अरिहंत भी कहा जाता है। अरिहंत का शाब्दिक अर्थ होता है, ‘जिसने अपने भीतर के शत्रुओं पर विजय पा ली’।

जैन धर्म: यूपी से पुराना नाता

जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों से संबंधित उन स्थलों को जहां उनका जन्म हुआ, जहां उन्होंने जीवन व्यतीत किया और उपदेश दिए आदि को तीर्थ माना गया है। तीर्थों की स्थापना का मूल उद्देश्य आध्यात्मिक रहा है।उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है, जिसका जैन धर्म से बेहद पुराना नाता है। यह कई जैन मंदिरों के साथ-साथ स्मारकों की श्रृंखला है, जहां जैन धर्म के उपासक और पर्यटक आते हैं। जैन धर्म की अति परंपरा है। इससे संबंधित उल्लेख विशेषकर पौराणिक साहित्यों में प्रचुर मात्रा में हैं। जैन धर्म दो संप्रदायों में बंटा है- श्वेतांबर व दिगम्बर। जैन धर्म का प्रमुख ग्रन्थ समयसार है। यह आचार्य कुन्दकुन्द देव ने 2000 साल पहले लिखा था। इसमें कुल 415 गाथाएं (एक तरह के छंद) हैं। समयसार प्राकृत भाषा में लिखा गया है।

पहले तीर्थंकर का जन्म अयोध्या में

अयोध्या की पहचान भारत के अति प्राचीन नगरों में होती है। हिन्दुओं और जैनियों के लिए अयोध्या विशेष महत्व रखता है। जैन परंपरा के अनुसार, यहां 7 कुलकरों और 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ। ऐसा कहा जाता है कि इन कुलकरों ने सांसारिक नियमों का निर्माण किया।जैन मान्यताओं के अनुसार, अयोध्या आदि तीर्थ एवं आदि नगर है। जैन साहित्य में इस नगर के कई नाम मिलते हैं, जैसे- विनीता, साकेत, इक्ष्वाकु भूमि, कौशल, अवज्झा इत्यादि। जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म अयोध्या में ही हुआ था। जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव का ऋग्वेद, अथर्ववेद, मनुस्मृति तथा भागवत आदि ग्रंथों में भी वर्णन है। जैन धर्म के श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शन पूजन करने के लिए प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में अयोध्या जाते हैं।

अयोध्या में कई जैन मंदिर

अयोध्या, जैन धर्म का शाश्वत तीर्थ क्षेत्र (जहां भगवान का अवतार) है। देशभर से बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग अयोध्या आते हैं। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद आगंतुकों की संख्या में वृद्धि से जैन मंदिरों के दर्शनार्थी भी बढ़े हैं। अयोध्या के रायगंज में भगवान ऋषभदेव की 31 फीट ऊंची मूर्ति है। इसे ‘बड़ी मूर्ति’ के नाम से जाना जाता है। अयोध्या में श्री दिगंबर जैन मंदिर, अयोध्या जैन मंदिर और अयोध्या श्वेतांबर जैन मंदिर हैं। यहां कई तीर्थंकरों के जीवन से संबंधित 18 कल्याणक (कल्याण करने वाला) घटित हुए हैं।

देवगढ़: 31 जैन मंदिर, 1008 प्रतिमाएं

बुंदेलखंड के ललितपुर में जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर दूर बेतवा के तट पर विंध्याचल के दक्षिण-पश्चिम पर्वत श्रृंखला पर देवगढ़ का प्रसिद्ध और ऐतिहासिक नगर है। यहां 31 जैन मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण 862 ईस्वी पूर्व हुआ था। इन मूर्तियों में सबसे सुंदर मंदिर जैन तीर्थंकर शांतिनाथ भगवान का है। यह स्थापत्य कला का अभूतपूर्व नमूना है। इस मंदिर के चारों ओर 1008 प्रतिमाएं खुदी हैं। मान्यता है कि, 12वीं या 13वीं शताब्दी में इस स्थान का नाम देवगढ़ रखा गया था। क्योंकि, माना जाता है कि इसका निर्माण देवताओं ने किया था। एएसआई ने देवगढ़ स्थल पर एक पुरातात्विक संग्रहालय बनाया है, यह अपनी कीमती पुरातात्विक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।जैन मूर्तियां असाधारण हैं। उनकी बनावट कमोबेश ग्वालियर और बिहार के नजदीकी क्षेत्रों के मिले मूर्तियों के समान हैं। कुछ जैन मंदिरों में पूजा अभी भी नियमित रूप से होती है।

हस्तिनापुर: यहां जैन मंदिरों की श्रृंखला

मेरठ जिला मुख्यालय से 37 किलोमीटर और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है हस्तिनापुर। यह स्थल राजसी, भव्यता, शाही संघर्षों तथा महाभारत काल के पांडवों और कौरवों की रियासतों का गवाह रहा है। हस्तिनापुर, जैन श्रद्धालुओं के बीच काफी चर्चित है। जैन धर्म के विभिन्न मान्यताओं के केंद्र यहां हैं, जैसे- जम्बूद्वीप जैन मंदिर, श्वेतांबर जैन मंदिर, प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर, अष्टापद जैन मंदिर और श्री कैलाश पर्वत जैन मंदिर आदि। हस्तिनापुर में अभ्यारण्य, वन्यजीव पर्यटन, एडवेंचर और ईको-टूरिज्म से संबंधित गतिविधियों का भी केंद्र है।

बागपत: 650 साल का इतिहास समेटे जैन मंदिर

बागपत के बड़ौत स्थित श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर स्वयं में 650 साल का इतिहास समेटे है। मंदिर में विराजमान मूर्तियां भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मंदिर की दीवारों, छतों पर बनी नक्काशी और चित्रकारी भव्यता को दिखाते हैं। इन पर सोने का काम इतना बेजोड़ है। इस जैन मंदिर में कुल सात वेदियां है, जिन पर अलग-अलग तीर्थंकरों की मूर्तियां विराजमान हैं। खास बात है कि, यहां उत्तर भारत का सबसे बड़ा ‘उछाव पर्व’ होता है, जिसमें शामिल होने देश भर से जैन समाज के लोग आते हैं।

देवरिया: भगवान पुष्पदंत नाथ का विशाल मंदिर

यूपी के देवरिया जिले के खुखुंदू में जैन धर्म के नौवें तीर्थंकर भगवान पुष्पदंत नाथ का विशाल मंदिर है। यहां उनकी प्रतिमा भी स्थापित है। इसे देखने दुनियाभर से श्रद्धालु/पर्यटक आते हैं। यह जैन धर्म मानने वालों का विशेष आकर्षण केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि, यहां के घने जंगलों में भगवान पुष्पदंत नाथ ने वर्षों तपस्या की थी। वह जैन धर्म के नौवें तीर्थंकर थे।

श्रावस्ती: तीसरे जैन तीर्थंकर का हुआ था जन्म

श्रावस्ती जिला स्थित शोभनाथ का पुराना मंदिर जैन तीर्थंकर संभवनाथ को समर्पित है। शोभनाथ मंदिर भारत के प्रसिद्ध जैन मंदिरों में एक है। श्रावस्ती में महेट के प्रवेश द्वार पर स्थित जैन अनुयायियों के लिए बड़ा आस्था का केंद्र है। संभवनाथ तीसरे जैन तीर्थंकर थे। उनका जन्म श्रावस्ती में राजा जितारी और रानी सुसेना के यहां हुआ था। यह लोकप्रिय तीर्थ स्थल एक आयताकार मंच पर बनाया गया है, जिसमें विभिन्न खंड हैं। मंदिर का मुख्य आकर्षण गुंबद के आकार वाली छत है, जो लाखोरी ईंटों से निर्मित है। मंदिर के एक कमरे में एक सपाट पत्थर पर लगभग 1000 वर्ष पुरानी भगवान ऋषभदेव की मूर्ति मिली थी।

वाराणसी: भगवान पार्श्वनाथ की जन्मभूमि

जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ हैं। पार्श्वनाथ से ही श्रमणों को पहचान मिली। पार्श्वनाथ ने चार गणों अर्थात संघों की स्थापना की। पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन वाराणसी के राजा थे। उनकी माता का नाम ‘वामा’ था। पार्श्वनाथ का जन्म लगभग 800 ईसा पूर्व यहीं हुआ था। भगवान पार्श्वनाथ 30 वर्ष की आयु में ही गृह त्याग संन्यासी बन गए। 83 दिन तक कठोर तप के बाद 84वें दिन उन्हें चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सम्मेद शिखर पर कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। वहीं, श्रावण शुक्ल की अष्टमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। उन्होंने 70 वर्षों तक अपने मत और विचारों का प्रचार किया। 100 वर्ष की आयु में देह त्याग दी।यह मंदिर दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों की विचारधाराओं पर आधारित है।

सारनाथ: श्रेयांसनाथ जैन मंदिर

सारनाथ, बौद्ध धर्म और हिन्दू के साथ-साथ जैन धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। जैन ग्रन्थों में इसे ‘सिंहपुर’ कहा गया है। मान्यता है कि, जैन धर्म के 11 वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म यहीं एक गांव में हुआ था। सन 1824 में निर्मित दिगंबर जैन मंदिर को ‘श्रेयांसनाथ मंदिर’ भी कहा जाता है। मंदिर में श्रेयांसनाथ की एक बड़ी छवि है। जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर के जीवन को दर्शाने वाले आकर्षक भित्ति चित्र भी हैं। इतिहास के अनुसार, चार तीर्थंकरों का जन्म वाराणसी आसपास हुआ था। इसलिए कई जैन श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए सारनाथ जाते हैं। मंदिर में कोई प्रवेश टिकट नहीं है। दर्शन का समय सूर्योदय से सूर्यास्त तक है। मुख्य सड़क से मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

फिरोजाबाद: जैनियों के आस्था का बड़ा केंद्र

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में स्थापित प्राचीन जैन मंदिर का इतिहास करीब 50 साल पुराना है। यह मंदिर जैन धर्मावलम्बियों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। इस मंदिर की स्थापना सेठ छदामी लाल जैन ने की थी। फिरोजाबाद स्थित इस जैन मंदिर की स्थापना प्रचार-प्रसार के लिए किया गया। मंदिर में भारत के सुदूर इलाकों से लोग आते हैं। यहां भगवान बाहुबली की बड़ी मूर्ति स्थापित है, जिसकी लंबाई 45 फीट और चौड़ाई 12 फीट है। भगवान बाहुबली की यह प्रतिमा जैन मंदिरों में से देश की पांचवीं सबसे बड़ी है।

पावानगर:..जहां महावीर ने दिया था अंतिम उपदेश

इतिहास के पन्नों में गुम पावानगर (कुशीनगर) पर्यटन मानचित्र पर महत्वपूर्ण स्थल के रूप में उभरा है। 527 ईसा पूर्व जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने कार्तिक त्रयोदशी के दिन अपना अंतिम उपदेश दिया था। कार्तिक अमावस्या के दिन यहीं उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी दोनों समकालीन थे। बुद्ध ने भी अंतिम भोजन पावानगर में ही किया था। धार्मिक, आध्यात्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में खासा। फाजिलनगर में महावीर स्वामी के निर्वाण स्थल पर श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र द्वारा साल 1971 में जैन मंदिर का निर्माण कराया गया।

मध्य भारत का एक क्षेत्र बुंदेलखंड जैन धर्म का एक प्राचीन केंद्र रहा है। यह भारत के उन प्रमुख हिस्सों में से एक है, जहां जैन धर्म की मजबूत उपस्थिति और गहरा प्रभाव है। बुंदेलखंड क्षेत्र में अनेक प्राचीन जैन तीर्थ स्थल हैं। जैन धर्म के कई आधुनिक विद्वान और भिक्षु इसी क्षेत्र से आते हैं। इसी तरह, आगरा सहित अन्य जिलों में भी जैन धर्म से जुड़े तीर्थ स्थल हैं जहां पर्यटक आते हैं। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग जैन धर्मावलम्बियों को आकर्षित करने के लिए छोटे-बड़े कई उपक्रम कर रही है। इसका सकारात्मक परिणाम भी नजर आ रहा है।